नालंदा विश्वविद्यालय:
भारत के प्राचीन विश्वविद्यालय

नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda University) विश्व का सबसे पहला और पुराना आवासीय विश्वविद्यालय था। नालंदा विश्वविद्यालय को नालंदा महाविहार के नाम से भी जाना जाता था। यह प्राचीन में मगध, और वर्तमान में बिहार के नालंदा जिला के राजगीर शहर के पास स्थित है।
नालंदा महाविहार में चीन, कोरिया, जापान, तुर्की, तिब्बत, इंडोनेशिया, श्रीलंका जैसे देशों से छात्र अध्ययन करने आते थे। यहाँ 10,000 छात्रों को पढ़ाने के लिए 2,000 शिक्षक रहते थे।
नालंदा विश्वविद्यालय का स्थापना और संरक्षण:
नालंदा महाविहार की स्थापना 427 ई. में गुप्त वंश के शासक कुमारगुप्त (शक्रादित्य) द्वारा की गई। गुप्त वंश के बाद नालंदा का संरक्षण हर्षवर्धन और पाल वंश के शासकों ने किया।
8 वीं और 9 वीं शताब्दी के दौरान पाल वंश के संरक्षण में नालंदा महाविहार खबू तरक़्क़ी की।
नालंदा विश्वविद्यालय का संरचना:
पूरा परिसर एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था जिसमें प्रवेश के लिए एक मुख्य द्वार था। कहा जाता है कि केंद्रीय विद्यालय में सात बड़े कक्ष थे और इसके अलावा तीन सौ अन्य कमरे थे।
अभी तक खुदाई में तेरह मठ मिले हैं, जिनमें एक से अधिक मंजिलें थीं और प्रत्येक मठ के आँगन में एक कुआँ था। परिसर में आठ भवन, दस मंदिर, प्रार्थना कक्ष, अध्ययन कक्ष, बगीचे, और झीलें भी थीं।
नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन:
यहाँ नागार्जुन, वसुबन्धु, असंग, और धर्मकीर्ति के महायान के प्रवर्तकों की रचनाओं का अध्ययन होता था। वेद, वेदांत, सांख्य, व्याकरण, दर्शन, शल्यविद्या, ज्योतिष, योगशास्त्र, चिकित्साशास्त्र, धातु की मूर्तियाँ बनाने का विज्ञान, और खगोलशास्त्र भी अध्ययन होते थे।
पुस्तकालय:
नालंदा महाविहार का पुस्तकालय बहुत विशालकाय था।
यह पुस्तकालय तीन विशाल भवनों में स्थित था, जिनके नाम रत्नरंजक, रत्नोदधि, रत्नसागर थे। ये तीनों भवन धर्मगंज नामक परिसर में स्थित थे, इसलिए इसे धर्मगंज के नाम से जाना जाता था।
पुस्तकालय में 9 मिलियन हस्तलिखित पांडुलिपियाँ मौजूद थीं। यह बौद्ध ज्ञान का दुनिया का सबसे समृद्ध भंडार था।
छात्र प्रवेश और दैनिक गतिविधियाँ:
नालंदा महाविहार में दाखिला पाने के लिए केवल 20 प्रतिशत छात्रों को ही एंट्री मिलती थी। एंट्री के लिए पहला टेस्ट द्वारपाल लेते थे, जो कठिन धर्म और दर्शन से जुड़े सवाल पूछते थे। इसके बाद दो और लेवल पर टेस्ट देने पड़ते थे। पास होने पर ही छात्रों को दाखिला मिलता था, और नालंदा में पढ़ाई के दौरान उन्हें वहीं रहना पड़ता था।
सुबह एक घंटे की आवाज से सभी भिक्षु उठ जाते। परिसर में उनके लिए दस तालाब होते जहाँ वे नहाते थे। नहाने के बाद, वे अपनी कमर से डेढ़ फुट चौड़ा और 5 फुट लम्बा कपड़ा लपेट लेते थे। भिक्षु और विद्यार्थी खाना खाने के बाद फिर से नहीं नहाते।
यहाँ छात्रों को भारतीय दर्शन, व्याकरण, ताराशास्त्र, और गणित जैसे विषयों की पढ़ाई होती थी। पढ़ाई का तरीका अद्वितीय था, छात्र बड़े हॉल्स में आमने-सामने बैठकर वाद-विवाद करते थे, फिर शिक्षक उनकी गलतियों को सुधारते थे। ह्वेन सांग के अनुसार, नालंदा में एक समय में दस हजार छात्र पढ़ाई करते थे, और उन्हें पढ़ाने के लिए लगभग 1500 शिक्षक होते थे।
छात्रों को किसी भी आर्थिक चिंता का सामना नहीं करना पड़ता था। उनके लिए शिक्षा, भोजन, वस्त्र, औषधि और उपचार सभी निःशुल्क थे। राज्य द्वारा विश्वविद्यालय को दो सौ गाँव दान मिले थे, जिससे उसका खर्च चलता था।
यहाँ 300 कक्ष बने थे जहाँ छात्र रहते थे। वे अकेले या साझे कमरों में रहते थे। कमरे छात्रों को उनकी प्राथमिकता के आधार पर दिए जाते थे। इसका प्रबंधन छात्र संघ के माध्यम से होता था।
महत्वपूर्ण विद्वान:
नालंदा महाविहार में प्रसिद्ध विद्वान भारतीय गणित के आचार्य और शून्य के आविष्कारक आर्यभट 6ठी शताब्दी के दौरान शिक्षक के रूप में मौजूद थे।
हर्ष, नागार्जुन, धर्मकीर्ति, असंग, वसुबन्धु, चंद्रकीर्ति, ज्युआनज़ांग, अतीश शामिल धर्मपाल और शीलभद्र जैसे प्रतिष्ठित बौद्ध गुरु भी शामिल थे।
विनाश:
नालंदा महाविहार को 1190 ईस्वी में तुर्क-अफगान सैनिक जनरल बख्तियार खिलजी द्वारा आग लगा दी गई। आग लगने के बाद नालंदा महाविहार का पुस्तकालय लगभग तीन महीनों तक जलता रहा।
आग लगने से भारतीय संस्कृति और बौद्ध धर्म के ज्ञान का मूल्यवान संग्रह जलकर नष्ट हो गया।
शेष पांडुलिपियाँ:
विनाश से बची कुछ पांडुलिपियाँ अब लॉस एंजिल्स काउंटी म्यूजियम ऑफ आर्ट और तिब्बत के यांग लुंग म्यूजियम में संरक्षित हैं।
चीनी यात्री ह्वेनसांग नालंदा से 657 संस्कृत ग्रन्थ और बौद्ध धर्म से जुड़े 150 अवशेष अपने साथ वापिस ले गए जिसके लिए उन्हें 20 घोड़ों की आवश्यकता पड़ी।
ह्वेनसांग 637 ईस्वी में नालंदा आए और पांच वर्ष यहां बिताए, जहां उन्हें मोक्षदेव नाम मिला। अपनी पुस्तक "सी-यू-की" में अपनी यात्रा और तत्कालीन भारत का विवरण दिया है।
ह्वेनसांग के बाद नालंदा की ख्याति इतनी बढ़ी कि अगले 30 सालों में चीन और कोरिया से 11 यात्री नालंदा आए, जिनमें इत्सिंग ने 10 साल गुजारे और 400 ग्रंथ लेकर चीन लौटे। उन्होंने भी अपने यात्रा वृतांतों में नालंदा का विस्तार से जिक्र किया।
नालंदा की खोज:
नालंदा महाविहार को 1812 ईस्वी में स्कॉटिश सर्वेयर फ्रांसिस बुकानन हैमिल्टन द्वारा विश्वविद्यालय को फिर से खोजा गया। एवं 1861 ईस्वी में सर अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा इसे आधिकारिक तौर पर प्राचीन विश्वविद्यालय के रूप में मान्यता दी गई।
पुनरुद्धार:
नालंदा महाविहार को पुनर्जीवित करने का प्रस्ताव डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा 2006 में पेश किया गया। 2010 ईस्वी में नालंदा विश्वविद्यालय विधेयक पारित किया गया।
2016 ईस्वी में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा राजगीर के पलखी गांव में स्थित स्थाई परिसर की आधारशिला रखी गई।
नया नालंदा:

815 वर्ष बाद नालंदा का पुनः निर्माण किया गया। नया नालंदा का उद्घाटन भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी एवं बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार द्वारा 19 जून 2024 को किया गया।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में, बिहार सरकार ने तेजी से 455 एकड़ जमीन विश्वविद्यालय परिसर के लिए आवंटित की। वास्तुकार बीवी दोषी ने पर्यावरण-स्थितिगत वास्तुकला डिज़ाइन की, जिसमें वैश्विक मानकों को पूरा करने के लिए आधुनिक सुविधाएं शामिल हैं।
यह कार्बन-न्यूट्रल, नेट-जीरो परिसर 100 एकड़ हरियाली और जल-निकायों से घिरा है, जो एक वास्तविक अध्ययन वातावरण को साकार करता है।यह परिसर प्राचीन वास्तु सिद्धांतों के साथ-साथ पर्यावरण के अनुकूल वास्तुकला को एकीकृत करता है।
नया नालंदा में लगभग 1900 छात्रों के लिए 40 कक्षाओं वाले दो ब्लॉक एवं 300 से अधिक की संयुक्त बैठक क्षमता वाले दो सभागार हैं। साथ ही यहाँ 550 छात्रों के लिए छात्रावास की सुविधाएं हैं एवं संकाय के लिए 197 शैक्षणिक आवास इकाइयाँ हैं। नया नालंदा में खेल परिसर, चिकित्सा, वाणिज्यिक और संकाय क्लब जैसी सुविधाएं हैं।
नया नालंदा में मुख्यतः बौद्ध अध्ययन, इतिहास, पारिस्थितिकी, सतत विकास, भाषाएं, साहित्य एवं अंतरराष्ट्रीय संबंध जैसे विषयों का अध्ययन किया जाएगा।